जा सके? अगर आप में करुणा नहीं है तो आप नहीं समझ सकेंगे हिंदू होने को, बौद्ध होने को या मुसलमान होने को। करुणा के बिना कोई धार्मिक नहीं हो सकता। जिसमें करुणा नहीं होती, वह धार्मिक होने के नाम पर वहशी हो जाता है। उसके लिए धर्म वर्चस्व कायम करने का ज़रिया बन जाता है। दरअसल, धर्म अंतत: आपको सहनशील होना सिखाता