हमें अपने शहर को इको-फ्रेंडली के साथ इश्क़-फ्रेंडली बनाना है। एक स्पेस बनानी है, जहाँ हम सुकून के पल गुज़ार सकें। जहाँ किसी को देखते ही पुलिस की लाठी ठक-ठक न करे और किसी से बात शुरू करते ही बीच में बादाम वाला न आ जाए। ठीक है कि प्रेम के लिए स्पेस की कमी कल्पनाओं में नहीं है, फ़िल्मों में नहीं है। फिर शहरों में क्यों है? यह तो ठीक बात नहीं