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August 20 - November 6, 2023
अध्यात्म में मोटेतौर पर 4 मार्ग होते हैं—ज्ञान मार्ग, योग मार्ग, भक्ति मार्ग और तंत्र (जादू-टोनेवाला न समझें, वास्तविक तंत्र अलग आध्यात्मिक मार्ग है) मार्ग।
इस पुस्तक में ‘शिव स्वरोदय’ शास्त्र के कुछ संस्कृत के श्लोकों का शास्त्र की प्रामाणिकता के लिए संदर्भ के रूप में प्रयोग किया गया है। शास्त्र के रचयिताओं को भी नमन!
सच्चे गुरु की पहचान हम कर ही नहीं सकते। सोचिए, अगर कोई सच्चे संत की पहचान करने में सक्षम है तो वह तो उससे भी बड़ा संत खुद हो गया...वह परीक्षक हो गया तो उसे किसी संत की क्या जरूरत है?
हम संत की परीक्षा नहीं कर सकते। जो सही मायने में संत होते हैं, वे आपको अपनी अनुभूति करवा देते हैं।
गुरु का अपने शिष्य से सदैव संबंध जुड़ा होता है। वह पहले शिष्य को तराशता है, परखता है, फिर सही समय आने पर उसे वह सब दे देता है, जिसका वह पात्र है।
किसी पुस्तक को पढ़ने या रटने से ज्ञान नहीं मिलता। उसको जानने के लिए उसमें बताई बातों पर अमल और उसका अभ्यास ही एकमात्र जरिया है।
गुरु मिले कैसे? आध्यात्मिक गुरु के विषय में भी गुरुगीता में बहुत स्पष्ट बताया गया है कि आपको गुरु की खोज नहीं करनी। सच्चा गुरु अपने लिए सच्चा शिष्य खोज ही लेता है।
अकसर हम पूरी मेहनत से कोई कर्म करके भी उसके फल से संतुष्ट नहीं होते और किस्मत को दोष देने लगते हैं। जबकि कर्म और उसके फल के बीच उस वक्त साँस में चल रहे तत्त्व की हमें कोई जानकारी ही नहीं होती।
होता यह है कि आप दिन में 10-20 बार तो याद करके वह सोच सकते हैं, जो आप चाहते हैं। लेकिन वह कृत्रिम होगा। उससे ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ काम नहीं करेगा। उसके लिए विचार में प्रबल इच्छाशक्ति का होना जरूरी है, तभी आपके भीतर से लगातार वैसे विचार उठेंगे, जो आप चाहते हैं। अब सवाल है कि आखिर लगातार वैसे विचार कैसे पैदा करें?
बस, यहीं पर एक ‘मिसिंग लिंक’ है। वह है आपकी साँस। जी हाँ, ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ के पीछे भी साँस के ही रहस्य काम करते हैं। उन रहस्यों को जाने बगैर ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ की बात पूरी तरह समझ नहीं आती। अब देखिए, ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ का संबंध हमारे सोचने से है। सोचते हम वही हैं, जो हमारे मन में विचार उठते हैं। मन अति सूक्ष्म है, उसका प्रकट रूप, यानी स्थूल रूप साँस है। जैसा मन, वैसी ही साँस होगी। जैसी साँस होगी, वैसी ही मन की स्थिति होगी।
जब साँस की गति बदल कर मन की स्थिति बदली जा सकती है, तो जाहिर सी बात है कि इससे अपने विचारों को भी नियंत्रित किया जा सकता है। अब इसे ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ की दृष्टि से देखें तो अपनी साँस बदलकर आप अपने विचार को भी नियंत्रित कर सकते हैं। यानी आप अपना हर दिन, यहाँ तक कि हर घंटा अपने मुताबिक बना सकते हैं। यह कुछ साधारण से उदाहरण...
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चीन में 165 साल के एक व्यक्ति से जब उसकी लंबी उम्र का राज पूछा गया तो वह बस दो ही बातें बोला—पहली, कि वह नाभि तक पूरी साँस लेता है और पूरी साँस बाहर छोड़ता है। दूसरी, वह अपनी रीढ़ की हड्डी को हमेशा सीधा रखता है।
“अरे बचवा! दिन में चलावे चंद्र और रात चलावे सूर्य, सो योगी हुई जावे।”
यह तत्त्व भौतिक (physical) नहीं है, जबकि हवा भौतिक है।
जब भी आप किसी बीमार इनसान के पास या अस्पताल में जाते हैं, तब अनुभव करें तो पाएँगे कि जैसे आपके भीतर से कुछ कम हो रहा है। आपके भीतर से कुछ चूसा जा रहा है। ऐसा क्यों अनुभव होता है? क्योंकि बीमार इनसान को अधिक प्राण-ऊर्जा की आवश्यकता होती है। वह उसे आस-पास के लोगों के हिस्से की प्राण-ऊर्जा से भी लेता है।
पहुँचे हुए सिद्ध पुरुष आसानी से किसी को अपने पाँव नहीं छूने देते। कोई उनके पाँव छुए भी, तो वे अपना हाथ उसके सिर पर नहीं रखते, बल्कि दूर से ही आशीर्वाद देते हैं। इसका कारण यह नहीं कि वे किसी को अपनी ऊर्जा देना नहीं चाहते, बल्कि वास्तविक कारण यह है कि ऐसे सिद्ध जनों के भीतर ऊर्जा की जो गुणवत्ता होती है, वह जितनी मात्रा में होती है, उसे सामान्य जन बरदाश्त तक नहीं कर सकते इसलिए वे दूर से ही आशीर्वाद देते हैं।
स्वर-शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में 7,200 नाड़ी होती हैं। यह नस या नर्व नहीं होतीं, बल्कि यह हमारे शरीर में प्राणवायु को संचालित करने का मार्ग होती हैं। इसलिए किसी एक्स-रे या एम.आर.आई. जैसे टेस्ट से इनको देखा नहीं जा सकता। क्योंकि वायु दिखाई नहीं देती।
शत्रून्हन्यात् स्वबले तथा मित्र समागमः। लक्ष्मीप्राप्तिः स्वरबले कीर्तिः स्वरबले सुखम्॥ स्वर की शक्ति से शत्रु पराजित हो जाता है, बिछुड़ा मित्र मिल जाता है। यहाँ तक कि माता लक्ष्मी की कृपा, यश और सुख, सबकुछ मिल जाता है। कन्याप्राप्ति स्वरबले स्वरतो राजदर्शनम्। स्वरेण देवतासिद्धिः स्वरेण क्षितिपो वशः॥ स्वरज्ञान द्वारा पत्नी की प्राप्ति, शासक से मुलाकात, देवताओं की सिद्धि मिल जाती है और राजा भी वश में हो जाता है।
भगवान् शिव पार्वती से कहते हैं—हे देवी, सभी शास्त्रों, वेदों, वेदांतों, पुराणों और स्मृतियों में बताया गया कोई ज्ञान या तत्त्व स्वरज्ञान से बढ़कर नहीं है।
(भगवान् शिव कहते हैं) सभी उत्तम शास्त्रों में स्वर-शास्त्र सर्वोत्तम है, जो हमारे आत्मारूपी घट (घर) को दीपक की ज्योति से आलोकित कर देता है।
(हे देवी) जिस व्यक्ति का स्वभाव शांत हो गया हो, जिसका चित्त शुद्ध हो, जो सदाचारी हो, अपने गुरु के प्रति एकनिष्ठ हो, जिसका निश्चय दृढ़ हो, ऐसे अच्छे आचरणवाले व्यक्ति को स्वरज्ञान की दीक्षा देनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति स्वरज्ञान का अधिकारी होता है।
इस ग्रंथ में कुल 364 श्लोक हैं।
साँस को ही ‘स्वर’ कहा जाता है।
कृष्ण पक्ष की 1, 2, 3 तारीख को पिंगला नाड़ी चलनी चाहिए, 4, 5, 6 तारीख को इड़ा, 7, 8, 9 तारीख को पिंगला, 10, 11, 12 तारीख को इड़ा, 13, 14, 15 तारीख को पिंगला।
इस तरह इस चार्ट के आधार पर हम किसी भी दिन यह जान सकते हैं कि उस दिन सूर्योदय के समय हमारी कौन सी नाड़ी चलनी चाहिए। अगर वह अनुकूल नहीं चल रही तो उसे बदलकर सही कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, बाईं नाड़ी चलने पर यदि आप बाईं करवट ही लेट जाते हैं तो थोड़ी देर में नाड़ी बदल जाएगी। इसी प्रकार दाईं नाड़ी दाईं करवट लेटने से बदल जाती है। इस तरह आप अपनी मर्जी से नाड़ी बदल सकते हैं।