Amit kumar Shukla

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रोने में कुछ शर्म नहीं, कितने कमरों में बंद हिमालय रोते है ⁠। मेज़ों से लगकर सो जाते कितने पठार कितने सूरज गल रहे हैं अंधेरों में छिपकर हर आँसू कायरता की खीझ नहीं होता
Ruk Jaana Nahin / रुक जाना नहीं (Hindi Edition)
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