ख़तों का सफरनामा [Khaton Ka Safarnama]
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जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा रसीदी टिकटभी शामिल
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पद्मविभूषण
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साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली भी वे पहली महिला लेखिका हैं।
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अमृता जब इमरोज़ से मिलीं, वह दो बच्चों की मां थी। वह इमरोज़ से सात साल बड़ी थी और एक नाखुश शादीशुदा ज़िन्दगी जी रही थी,
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इमरोज़ कुंवारे थे
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अमृता इमरोज़ के ये ख़त मूल रूप में पंजाबी में हैं। अमृता इमरोज़ की दोस्त उमा त्रिलोक ने इन ख़तों का हिन्दी में सम्पादन कर संकलित किया है।
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‘जोरबा-द-ग्रीक’
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द नेकिड माजा’
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‘आखिरी ख़त’
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इस किताब में वही ख़त शामिल किए गए हैं, जो सीधे डाक से उन्हें मिले और जो इमरोज़ ने सीधे अमृता को लिखे थे।
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अपनी ज़िन्दगी के पिछले 45 सालों में अमृता ने इमरोज़ की मोहब्बत को भरपूर जिया और उसी प्यार की खुशबू में महकती रहीं।
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अमृता जानती थी कि वह इमरोज़ की मनचाही थी, लेकिन फिर भी उन्हें अपना, इमरोज़ से सात साल बड़ा होना चुभता रहा। उन्हें यह बात कचोटती रही कि जब उन्हें प्यार मिला उनकी ज़िन्दगी की शाम हो चली
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और कायनात ने कुछ ऐसा ही कर दिया। अमृता बीमार हो गई, फिर शुरू हो गई तीमारदारी। इमरोज़ ने उन्हें बच्चों की तरह, संभाला, हाथों से खिलाया, हाथों से उठाया और अमृता ने उन्हीं हाथों में दम तोड़ा।
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काम में अगर कभी मन लगता भी है, तो काम के बाद सख्त डिपरेशन हो जाता है कि मैं यहां क्यों हूं, तुम्हारे बगैर क्यों हूँ? अपने आप पर गुस्सा आता है, बेहद गुस्सा।
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पंडित जी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, मानवता की सारी खूबसूरती की तस्वीर।
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सिर्फ तुम्हारी मोहब्बत का चैक कैश करवाना है, अगर ज़िन्दगी के बैंक ने कैश कर दिया तो !
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Love is the only freedom in this world.