विदेशी और स्वार्थी इतिहासकारों ने इस दिव्य हिंद का चित्र चाहे कितने ही गंदे रंगों से भरा हो, फिर भी जब तक हमारे इतिहास के पृष्ठों पर से चित्तौड़ का नाम पोंछा हुआ नहीं है, सिंहगढ़ का नाम मिटा नहीं है, प्रताप आदि का नाम मिटा नहीं है या गुरु गोविंद सिंह का नाम पोंछा नहीं गया है, तब तक ये स्वधर्म और स्वराज्य के तत्त्व हिंदुस्थान के रक्त-मांस में जमे रहेंगे। उनपर क्षण भर गुलामी के भ्रम के बादल चाहे आएँ—सूर्य पर भी बादल आते हैं—परंतु वह क्षण समाप्त होते-न-होते उस तप्त सूर्य की उष्णता से वे पिघल जाएँगे, इसमें शंका नहीं।