स्वराज्य के लिए हिंदुस्थान ने कौन सा प्रयास नहीं किया और स्वधर्म के लिए हिंदुस्थान ने कौन सी दिव्यता अंगीकार नहीं की।...‘‘सूरा सो पचाजिए जो लढ़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे तबहु न छोड़े खेत।’’ (गुरु गोविंद सिंह) इस रीति से स्वधर्म के लिए रण-मैदान में टुकड़े-टुकड़े हो जाने पर भी जो हटते नहीं—वीरों की ऐसी घटनाओं से भारतभूमि का संपूर्ण इतिहास भरा हुआ है।