Abhishek

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यह मनःक्रांति संपादित करने के लिए मन की ओर जो भी रास्ते जाते हैं उन सारे रास्तों पर क्रांति की चौकियाँ स्थापित करनी चाहिए। मानव मन सहज ही उत्सवप्रिय होता है, अतः सामान्य जनसमूह को वश में करने के लिए उत्सव के अतिरिक्त दूसरा राजमार्ग नहीं दिखता। इन उत्सवों को शक्कर में घोलकर सिद्धांतों की गोली दी जाए तो समाज का बालमन उसे रुचि से गटक लेता है और उससे रोग भी ठीक हो जाते हैं। ऐसे
1857 का स्वातंत्र्य समर
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