मुसलमानों की परतंत्रता पर जिस शूर और स्वाभिमानी जाति को इतना गुस्सा आया था कि सौ वर्ष तक अखंड लड़ाई कर अंत में पंजाब को स्वतंत्र किए बिना उन्होंने तलवार नीचे नहीं रखी, उसी ‘खालसा’ पंथ के अनुयायियों ने अंग्रेजों की गुलामी को इतना चाहा हो, ऐसा बिलकुल नहीं है। पर अंग्रेजों का राज गुलामी है या नहीं, यह उन सिपाहियों की बुद्धि में पूर्णता से आ भी नहीं पाया कि सन् १८५७ आ गया।