Satyaprakash Pareek

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वह तराजू कहाँ मिलेगा कि अपनी इच्छा को, बात की अहमियत को, एकदमसही–सही तोल पाऊँ–इतने तोला, इतने माशा, इतने रत्ती? पर हो भी ऐसा तराजू तो क्यों इतना तुलवाती हो?
Maai (Hindi Edition)
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