Satyaprakash Pareek

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अपने से अलग माई को नहीं देखा । उसका जीवन ही, हमारा मानना था, हमारे बचपन से शुरू हुआ । वह तो बाद में उसकी आँखों से झरी ठंडी राख मिली । और तब कितनी ही चीज़ों पर उस राख का कोई ज़र्रा पड़ा मिल गया ।
Maai (Hindi Edition)
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