Satyaprakash Pareek

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जब जीवन को नहीं कोई बन्द कमरे में खत्म कर सकता तो फिर तारुण्य तो गैस का गुब्बारा है कि डोर कसके पकड़े रहो तो भी उमंग से झूम रहा है; डोर छूट जाए, जो छूट ही जाती है, तो ऊपर बादलों में उड़ रहा है ।
Maai (Hindi Edition)
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