हमने उसका पर्दा देखा था । उस पर्दे को दूसरों के हाथों में बेजान पड़ा देखा, जिसने चाहा इधर सरकाया, जिसने चाहा उधर झटकाया । हम समझे वह माई ही तो है । पर्दे के पीछे से गरिमा की लहक नहीं आई, कोई भींगा–भींगा सोज़ नहीं सुन पाए । बेरंग बना दिया उस जीवन को जो पर्दा करता था ।