आपने अपने बारे में इस बात पर ग़ौर किया होगा : जब आप प्रसन्न रहते हैं, तब आपकी विस्तार की इच्छा होती है। आप जब डरे होते हैं, तो सिमट जाना चाहते हैं। इसे आज़माकर देखिए। किसी पौधे या पेड़ के सामने कुछ मिनट के लिए बैठ जाइए। स्वयं को याद दिलाइए कि पौधा जो साँस छोड़ रहा है, उसे आप अपने अंदर ले रहे हैं और आप जो साँस बाहर छोड़ रहे हैं, उसे पौधा अपने अंदर ले रहा है। भले ही यह चीज़ अभी तक आपके अनुभव में न हो, फिर भी उस पौधे के साथ एक मनोवैज्ञानिक संबंध स्थापित कीजिए। इसे दिन में पाँच बार दोहराइए। कुछ दिनों बाद आप अपने आसपास की हर चीज़ से अलग तरह से जुड़ने लगेंगे। आप खुद को केवल एक पौधे तक ही सीमित नहीं रखेंगे।