Indra  Vijay Singh

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पूँजीवाद का तब कोई स्पष्ट राजनीतिक चेहरा या वैचारिक केंद्र नहीं था। दक्षिणपंथ ही तब पूँजीवाद का विकलांग प्रवक्ता था, जो साहित्य में रचनावाद का समर्थक होकर उभरा था। वामपंथ उस समय परिवर्तन का प्रवक्ता था। वह साहित्य के कलावादी शाश्वतवाद से इन्कार करता था पर शब्द की रचनात्मक गरिमा को पहचानते हुए, नश्वर कारणों के बीच से मनुष्य के समतामूलक शाश्वत भविष्य को रूपायित करना चाहता था।
Jalti Hui Nadi (Hindi Edition)
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