Kindle Notes & Highlights
भारत में सामंती और जातिवादी ताकतों की ठीक उसी तरह की मानसिकता है, जैसी अमेरिका, अफ्रीका और पश्चिमी देशों में श्वेत श्रेष्ठता हुआ करती थी। ब्रिटिश शासकों ने सामाजिक गैरबराबरी का फायदा उठाते हुए डोम (दलित जाति) को पैदाइशी अपराधी घोषित कर दिया था और इसके जरिए बाँटो और राज करो की अपनी नीति को आगे बढ़ाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत में जाति पदानुक्रम के उच्च स्थान के लोगों ने अपनी सामंती मानसिकता के साथ अपना आधिपत्य जारी रखने के लिए वंचित तबकों को अलग-थलग कर दिया। मैं देखता हूँ कि मानव समाज सिर्फ दो वर्गों में बँटा हुआ है—शासक और शासित। जातिवादी, सामंती और निहित स्वार्थ शासक वर्ग का निर्माण करते
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मेरे बड़े भाई गुलाब राय को एक अजीब बीमारी हो गई थी। वह अकसर बीमार पड़ जाते थे और ‘मर’ जाते थे। जैसे ही कफन खरीदकर घर लाया जाता और उनके ‘शरीर’ को उससे ढककर उन्हें श्मशान ले जाया जाता, वह अचानक जिंदा हो जाते। वह कई बार इसी तरह ‘मर’ गए और ‘जिंदा’ हो गए।
हकीकत यह है कि मेरे दोस्त और गाँव के दूसरे लोग मेरे मजाक का आनंद उठाते थे और मुझे प्रोत्साहित करते थे।
एक और अवसर था हम जिसका इंतजार करते थे, वह था—मोहर्रम। हमारे गाँव में इसे ‘ताजिया’ कहते थे। हम गाँव के बड़े मुस्लिमों को काका या चाचा कहते थे। नबी रसुल चाचा, इस्माइल काका और यीशु काका रंग-बिरंगे ताजिए बनाते थे और हमारी बस्ती से होकर इसे निकालते थे। हम भी जुलूस में शामिल हो जाते और गाँव के आखिरी छोर तक साथ चलते। जुलूस के साथ चलते हुए हम बनेठी खेलते जाते थे, इसमें एक छड़ी होती थी, जिसके दोनों छोरों पर गेंद के आकार के लकड़ी के टुकड़े लगे होते थे। तब हम बच्चों
लेकिन आडवाणी, जो बहुत शांत और मीठी बोली बोलने वाले नेता थे, मेरी बात से गुस्सा हो गए। वह कहने लगे, ‘देखता हूँ, कौन माई का दूध पिया है, जो मेरी रथयात्रा रोकेगा।’ मैंने नहले पर दहला मारा, ‘मैंने माँ और भैंस, दोनों का दूध पिया है…। आइए बिहार में, बताता