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Kindle Notes & Highlights
अगर कहानी अच्छी बनानी है तो मुझे लगता है कि एक सम्पादक और लेखक के बीच रिश्ते दो तरह के होने चाहिए—या तो वैम्पायर का जहाँ वह एक-दूसरे का इतना ख़ून पिएँ कि एक-दूसरे के विचार उनकी रगों में दौड़ने लगें या फिर प्रेमियों जैसा जहाँ इशारों में ही एक-दूसरे की बात समझ जाएँ और कहानी को सही दिशा दे दें।
दोस्त बग़ल में खड़े हों तो दुनिया की ऐसी-तैसी!
दो लोगों के बीच दोस्ती या तो इस वजह से होती है कि दिल मिल जाते हैं या इसलिए कि उनकी ज़रूरतें एक-दूसरे से पूरी होती हैं। दूसरी स्थिति को सौदेबाज़ी भी कह सकते हैं, पर जब सौदेबाज़ी लम्बी चल जाए तो कई बार दोस्ती का भ्रम उत्पन्न हो जाता है।
जब आदमी अपनी जंग जीतने का कोई आसान तरीक़ा नहीं देखता तो वह धर्म और जाति की बातें करता है।
बेनीवाल की दोस्ती एक-दूसरे की ज़रूरत पूरी करने से शुरू हुई थी और जब तक राज्येश उनके बीच नहीं आया, तब तक उन्हें भ्रम था कि वह अब ज़रूरत से आगे बढ़ दोस्त बन चुके हैं।
प्रताप का पूरा नाम था प्रताप सिंह शेखावत। प्रताप जिस इलाक़े में रहता था वहाँ अधिकतर राजपूत थे। उस इलाक़े में जब कोई बच्चा पैदा होता तो उसे ऐसा टीका लगाया जाता जिससे बच्चे के ख़ून के RBC रेड ब्लड सेल की जगह राजपूत ब्लड सेल बन जाते थे और उस बच्चे को बड़ा होते-होते लगने लगता कि वह राजा है और प्रजा की रक्षा उसका फ़र्ज़ है। एक-दो
हमारे यहाँ राजनीति में अपराध को अपराध नहीं, ग्लैमर की तरह लिया जाता है
राजाओं को ख़त्म हुए ज़माने हो गए, पर राजस्थान में पूर्व महाराजाओं के शो ऑफ़ अभी भी बदस्तूर चालू हैं।
जातिगत वोट बैंक की मज़बूरियाँ नेताओं के लिए संविधान से बड़ी होती हैं।
अफ़सर वही जल्दी आगे बढ़ता है जो अपने सीनियर और नेताओं के इशारे को समझ पाता है।
मुख्यमंत्री राघवेन्द्र को बचाना भी चाहते हैं और साथ में फँसाना भी। आईजी समझ गए थे कि वह किसी बड़े खेल का छोटा-सा हिस्सा बन चुके हैं। यह कोई नई बात नहीं थी। पुलिस अक्सर राजनीति का हिस्सा बनती ही रही है और जैसा हमारा सिस्टम है, बनती भी रहेगी।
हमारे यहाँ नेता और जनता के बीच चुनाव के अलावा बाक़ी के समय में उतनी ही दूरी, उतना ही रिश्ता रहता है जितना भगवान और भक्त के बीच रहता है। भक्त तस्वीर में भगवान से देख सोचता है कि भगवान उस पर दृष्टि बनाए हुए हैं और जनता नेता को टीवी पर देख सोचती है नेताजी दृष्टि बनाए हुए हैं। जिस तरह भक्त भगवान को तक़लीफ़ें कहता रहता है, भगवान सुनते हैं कि नहीं, पता नहीं; उसी तरह जनता नेता से तक़लीफ़ें कहती रहती हैं, नेता सुनते हैं कि नहीं पता नहीं!
प्रस्तावक यानी वह जो प्रत्याशी के नाम का प्रस्ताव चुनाव अधिकारी के सामने रखे।
यक़ीन मानिए, दोस्त दोस्ती की कितनी ही क़समें खा लें, पर जब लड़की सामने हो तो साइड उसी की लेते हैं।
समझ-बूझ, रणनीति और धूर्तता के अलावा राजनीति में किसी के ऊपर चढ़ने या गिरने में क़िस्मत और टाइमिंग दोनों का बहुत बड़ा योगदान होता है।
एक अभिनेता में भविष्य का नेता हो न हो, पर एक नेता में भविष्य का अभिनेता अवश्य होता
शायद ऐसा धर्मशास्त्रों में लिखा गया होगा कि जिसके अच्छे मार्क्स आते हैं, उसे साइंस लेना होता है।

