Dharmendra Chouhan

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अकले हो जाना ही इस दुनिया की आखिरी सच्चाई है। भले आप भीड़ में मरें या अपने घर के बिस्तर पर, हर आदमी मरते वक्त अकेला ही होता है। इस दुनिया के बाद किसी दूसरी दुनिया की उम्मीद शायद हम सबकी आखिरी उम्मीद होती हो। ऐसी दुनिया जोकि हम बना सकते थे। ऐसी दुनिया जो हमें जिंदगी भर सपनों में दिखती थी। इसलिए शायद हम अपने सपने भूल जाते हैं क्योंकि अगर सपने याद रहें तो हमारे लिए यह दुनिया झेलना असंभव हो जाए।
अक्टूबर जंक्शन
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