Dharmendra Chouhan

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हम सबके अंदर एक किताब होती है। वो बात जो चैन से सोने नहीं देती। वो बात जो जागने के बाद ऑफिस के रास्ते में बार-बार याद आती है। वो बात जो कॉलेज में बोरिंग लेक्चर के बीच में याद आती है। वो बात जो समंदर के किनारे टहलते हुए सबसे पहले आकर पैर से टकराती है। वो बात जो किसी पहाड़ी रास्ते पर किसी छुट्‌टी के दिन बार-बार पेड़ से झाँकती है। वही बात ही तो आपकी कहानी है। वो कहानी जो सबके दरवाजे पर कभी न कभी खटखटाती जरूर है। लेकिन उस आवाज पर ध्यान न देने की वजह से एक दिन वो आवाज चुप हो जाती है और कहानी पूरी होते हुए भी किताब अधूरी छूट जाती है।
अक्टूबर जंक्शन
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