बनारस शहर सच और सपने के बीच में कहीं बसता है। बनारस में कोई समझ नहीं सकता कि सच क्या है और सपना क्या। कोई यहाँ सच ढूँढने आता है तो कोई सपना भूलने, लेकिन बनारस एक ढीठ शहर है। यह लोगों के सच को सपने में बदल देता है और सपने को सच की तरह दिखाने लगता है। बनारस के चौराहों पर जिंदगी के मायने गोल-गोल घूमते रहते हैं कोई पकड़ लेता है तो कोई खाली हाथ लौट जाता है। शहर थोड़ा मूडी है, हर किसी पर खुलता नहीं और हर किसी से खुलता नहीं। बात थोड़ी गहरी है कोई समझ जाए तो ठीक नहीं तो जय भोले नाथ!