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किताब का काम वही है जो पानी का एक छोटे से पौधे के लिए होता है। खुशबू और खूबसूरती पानी में नहीं होती लेकिन हर पौधे को पानी में अपनी खुशबू ढूँढ़नी पड़ती है।
बनारस शहर सच और सपने के बीच में कहीं बसता है। बनारस में कोई समझ नहीं सकता कि सच क्या है और सपना क्या। कोई यहाँ सच ढूँढने आता है तो कोई सपना भूलने, लेकिन बनारस एक ढीठ शहर है। यह लोगों के सच को सपने में बदल देता है और सपने को सच की तरह दिखाने लगता है। बनारस के चौराहों पर जिंदगी के मायने गोल-गोल घूमते रहते हैं कोई पकड़ लेता है तो कोई खाली हाथ लौट जाता है। शहर थोड़ा मूडी है, हर किसी पर खुलता नहीं और हर किसी से खुलता नहीं। बात थोड़ी गहरी है कोई समझ जाए तो ठीक नहीं तो जय भोले नाथ!
बनारस आते बहुत लोग हैं लेकिन पहुँच कम लोग पाते हैं।”
हमारे कितने हिस्से दुनिया में कहाँ-कहाँ कैद हैं ये हम कभी नहीं जान पाएँगे।
किसी बूढ़े आशिक ने मरने से ठीक पहले कहा था कि एक छटाँक भर उम्मीद पर साली इतनी बड़ी दुनिया टिक सकती है तो मरने के बाद दूसरी दुनिया में उसकी उम्मीद बाँधकर तो मर ही सकता हूँ।
बूढों की उम्मीद भरी बातें सुननी चाहिए। अच्छी लगती हैं, बस उनपर यकीन नहीं करना चाहिए। लेकिन
“Lord Shiva is great, now give 100 Rupee note. Lacs rupees blessing in 100 rupees only.”
“एक और पियो। तुम भी क्या याद करोगे!” चित्रा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। दुनिया में आने के बाद दोनों ने पहली बार एक-दूसरे को छुआ था। अगर ये लव स्टोरी होती तो इस पल को यहीं फ्रीज हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
वैसे एक बात बताओ? जिस तरह के हाई प्रोफाइल टाइप हो तुम, तुमने टेबल पर बात शुरू क्यों की? तुम चाहते तो आराम से अवॉइड कर सकते थे?” “तुम बुरा मान जाओगी।” “नहीं मानूँगी, अब बताओ।” “आपके
वो सवाल जो हम एक-दूसरे से पूछ रहे होते हैं वो असल में हम अपने-आप से पूछ रहे होते हैं।
कोई साथ बैठा हो, चुपचाप हो और चुप्पी अखर न रही हो। ऐसी शामें कभी-कभार आती हैं। जब कोई जल्दबाजी न हो कि कुछ-न-कुछ बोलते रहना है। वर्ना तो अक्सर ही दिमाग पर प्रेशर होता है कि बातों को थमने न दें। वह बड़ी अच्छी बातें करता है या वह बड़ी अच्छी करती है के बजाय कभी कोई यह क्यों नहीं बोलता कि उसके साथ बैठकर चुप रहना अच्छा लगता है। किसी के साथ बैठकर चुप हो जाना और इस दुनिया को रत्ती भर भी बदलने की कोई भी कोशिश न करना ही तो प्यार है।
हम इतनी झूठी जिंदगी जी रहे हैं कि हम दूसरे को चुप करवाते हुए अपने-आपको भी चुप करवा रहे होते हैं। चुप कराने से जब सामने वाला चुप हो जाता है तो बेचैनी और बढ़ जाती है कि हम खुद कहाँ जाकर रोएँ और हमें चुप कौन कराएगा।
जब ऑटो लंका से निकल रहा था तो यूनिवर्सल बुक शॉप पर चित्रा ने ऑटो रुकवाया। दुकान में अंदर जाते ही चित्रा ने बिना एक भी मिनट गँवाये मुराकामी की किताब ‘काफ्का ऑन द शोर’ खरीदी। उसके पहले पन्ने पर उसने लाल रंग के पेन से लिखा, With love, luck and light. इसके नीचे अपना ऑटोग्राफ स्टाइल में नाम लिखा और तारीख डाली 10-10-10 (10 अक्टूबर 2010)।
चित्रा ने इतना कहने के बाद सुदीप पर थोड़ा-सा भी जोर नहीं डाला। जोर डाला होता तो वह शायद नहीं पीता लेकिन चित्रा ने इस स्टाइल में पूछा कि सुदीप के मना करने का सवाल ही नहीं उठता था।
“सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा ये धूम-धड़क्का साथ लिए, क्यों फिरता है जंगल-जंगल इक तिनका साथ न जावेगा, मौकूफ हुआ जब अन्न और जल घर-बार अटारी, चौपारी, क्या खासा, तनसुख है मसलन क्या चिलमन, पर्दे, फर्श नये, क्या लाल पलंग और रंगमहल सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।”
प्यार की कहानियाँ इसीलिए प्यार करने वालों के मरने के बाद भी जिंदा रहती हैं क्योंकि उनके अंत में उम्मीद हो न हो लेकिन उनकी शुरुआत एक सुई की नोक जितनी उम्मीद से होती है।
तन की धूल साफ करने के लिए दुनिया में कितना कुछ है! मन की धूल की दुनिया में कोई औकात ही नहीं।
खुश होना कितना आसान है अगर उसको एक तारीख से जोड़ दिया जाए।
तारीख अगर तय हो तो वो एक बार नहीं आती। वो आने से कई दिनों पहले से आना शुरू हो जाती है।
कोई लड़की या लड़का अगर पूछे कि क्यों मिलना है और सामने वाला अगर उसका बिलकुल ठीक-ठीक जवाब दे दे तो उससे कभी नहीं मिलना चाहिए। अगर कोई बोले कि ‘मिलकर देखते हैं’, उससे जरूर मिलना चाहिए। मिलकर देखने में एक उम्मीद है कुछ ढूँढ़ने की, थोड़ा रस्ता भटकने की, थोड़ा सुस्ताने की। उम्मीद इस बात की भी कि नाउम्मीदी मिले लेकिन इतना सोच-समझकर चले भी तो क्या खाक चले!
नदी को बहते ही बहुत ध्यान से देखने पर एक मोमेंट आता है जब नदी रुक जाती है और बाकी सब कुछ पीछे छूटने लगता है। इसको साइन्स की नजर से देखें तो यह बहुत छोटी-सी बात है लेकिन अगर एक मिनट को साइंस भूल जाएँ तो नदी का बहना बहुत बड़ी बात है। नदी और जिंदगी दोनों बहती हैं और दोनों ही धीरे-धीरे सूखती रहती हैं।
असल में प्यार को हमने जिंदगी में जरूरत से ज्यादा जगह दे रखी है। हमें प्यार से जगह बचाकर कभी-कभार ऐसे ही शहर से दूर चले जाना चाहिए, जहाँ रिश्ते में प्यार तो हो लेकिन प्यार का नाम न हो।
सूरज के लिए दुनिया एक दिन और पुरानी हो गई थी। चित्रा और सुदीप के लिए दुनिया में होने का मतलब बस शाम को डूबते सूरज को देखकर चिपककर टहलना भर था।
सुन पाना इस दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। लोग बीच में समझाने लगते हैं। उससे ही सब बात खराब हो जाती है।
उस दो सेकंड को लिखने की फालतू-सी एक कोशश में लोग किताब लिख मारते हैं।
“तुम्हारी पीठ पर मैं उँगली से किसी ऐसे शहर का नाम लिखना चाहता हूँ जहाँ हम दोनों न गए हों। मुझे नहीं मालूम कि हम तुम्हारी पीठ पर लिखे शहर कभी जा पाएँगे या नहीं। इसको पढ़कर जवाब में कुछ भी मत लिखना। बस जल्दी से अपनी किताब पूरी कर लो। जो शामें खो जाती हैं, वो बस अधूरी किताबों में मिलती हैं। थैंक्स फॉर कमिंग।
ऊबे हुए लोग ही गूगल मैप का छोटे-से-छोटा रास्ता छोड़कर सड़क के किनारे की पगडंडी वाला लंबा रास्ता लेते हैं। नजारे बदलने से नजरिया भी बदल जाता
“If we are not together for real reasons like kids, security or emotional support. Then we should be together for unreal reasons like happiness, good company and comfort। मेरी लाइंस नहीं है लेकिन कहीं पढ़ी थीं।”
साल बुरा हो तो याद कर लेना चाहिए कि अगला साल आकर सब कुछ बदल देगा।
कुछ पा लेने के बाद जब हम एक ग्लास ठंडा पानी पीकर सुस्ताते हैं तब याद आता है कि हमारा वो एक हिस्सा खो गया जो इतना कुछ पाना चाहता था। चलते-फिरते हम रोज कितना कुछ खोते जा रहे हैं कि याद ही नहीं आता है कि कब बैठकर हमने आसमान में तारे गिने थे। कब आखिरी बार अपनी एक हाथ की उँगलियों को दूसरे हाथ की उँगलियों से छुआ था। कब बिना बात के ऐसे ही अपने मोबाइल पर किसी बिसरे हुए दोस्त को बिना किसी काम कॉल किया था, दोस्त जो अब थोड़ा अजनबी हो चुका है। कब शोर के बीच हमने किसी चिड़िया की आवाज को बचाने की कोशिश की थी। कब हमने 12 महीने के बच्चे के जैसे धूप को कमरे में झाँकते हुए देखकर चौंके थे। कब डूबते सूरज के साथ दस
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कमाल की बात है वे लोग कभी घर बनाने में अपना एक भी मिनट खराब नहीं करते जो कभी भी घर बना सकते हैं। यह जानते हुए कि यहाँ हमेशा नहीं रहना ऐसे में अपना घर बनाना और घर होना इस दुनिया का सबसे बड़ा धोखा है। यह भ्रम ऐसा ही है जैसे ट्रेन की सीट को आदमी हमेशा के लिए अपना समझ ले। एक दिन स्टेशन आएगा और हम उतरने के बाद पीछे मुड़कर भी नहीं देखेंगे।
कई बार थोड़ी देर के लिए चले जाना बहुत देर के लिए लौट आने की तैयारी के लिए बहुत जरूरी होता है।
जिंदगी एक हद तक ही परेशान करती है। उसके बाद वो खुद ही हाथ थाम लेती है। जिंदगी ताश के पत्ते जैसे ही भरोसे का खेल है जिनको होता है वो परेशान भले दिखें, अंदर से परेशान होते नहीं। इसलिए खेल में पत्ते अच्छे हों या खराब जीतने वाले आखिर ब्लाइंड में भी जीत ही जाते हैं। जिंदगी पर ब्लाइंड खेलने जितना भरोसा रखना ताश के पत्ते पर बाजी लगाने जितना आसन होता नहीं, इसलिए लोग हारने से बहुत पहले ही हार चुके होते हैं।
“In india this is not end of life, it’s part of life.”
उम्र के बाद बिस्तर पर अकेले सोना इस दुनिया का सबसे बड़ा काम है। हर बिस्तर पर इतनी जगह होती है कि उसमें समंदर भर बेचैनी सूख जाए। सुदीप को सालों बाद पापा के साथ सोकर अपना खोया हुआ घर मिल गया था।
ऐसा कहते हैं कि संगम की तीसरी नदी सरस्वती सबको नहीं दिखती। असल में सरस्वती नदी सबके भीतर होती है लेकिन गंगा-जमुना के चक्कर में उस नदी तक कम लोग ही पहुँच पाते हैं। सगंम में गंगा और जमुना का रंग तो अलग-अलग दिखता है लेकिन सरस्वती का रंग वही होता है जो हमारे मन में होता है।
जब कोई मरता है तो वह अकेले नहीं मरता अपने साथ पूरी दुनिया लेकर मरता है।
“हर आदमी में एक औरत और हर औरत में एक आदमी होता है। हर आदमी अपने अंदर की अधूरी औरत को जिंदगी भर बाहर ढूँढ़ता रहता है लेकिन वो औरत बड़ी मुश्किल से मिलती है। वैसे ही हर औरत अपने अंदर का अधूरा आदमी ढूँढ़ती रहती है लेकिन वो अधूरा आदमी बड़ी मुश्किल से मिलता है। और कई बार वो अधूरा मिलता ही नहीं। लेकिन अगर एक बार अधूरा हिस्सा मिल जाए तो आदमी मरकर भी नहीं खोता। तू ध्यान से देख वो कहीं नहीं गया तेरे अंदर है। आधी तू आधा वो।”
‘With love luck & light, Chitra’।