हो सकता है कि मेरे ऐसा करने से कहानी कमजोर होती हो लेकिन मुझे परवाह नहीं क्योंकि परवाह करके न कहानियाँ लिखी जा सकती हैं और न ही कहानियों को जिया सकता है। मैं कहानियाँ लिखने से ज्यादा उनको जीने में विश्वास करता हूँ। इसलिए अपने घटिया लिखने का दोष मैं अपने पूरे होशो-हवास में अपनी जिंदगी को देता हूँ। मलाल बस यही है कि मैं जिंदगी को बस उतना ही पकड़ पाया हूँ जितना कि एक मुट्ठी बंद करके कोई हवा पकड़ पाता है।