Ayushi Singh

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इतिहास के अवशेषों से जब भी हम गुज़रते हैं, सच में आश्चर्य होता है कि हम पहले ये थे? फिर लगने लगता है कि हम अभी भी तो इसी सबसे गुज़र रहे हैं। क्या बदला? हम पता नहीं क्या सब बना रहे थे और कितना सारा मिटा रहे थे! जो ये सब पुराना शेष बचा है जिसे हम अभी छू रहे हैं, क्या इन अवशेषों में हम साफ़ नहीं देख सकते हैं कि हिंसा सिर्फ़ ख़त्म करती है? आओ कुछ नई ग़लतियाँ करें। कब तक पुरानी ग़लतियों को दुहराते रहेंगे? ये जो खंडहर बचे रह गए हैं, उन्हें किसी ने तो सहेजा है—आने वालों को दिखाने के लिए कि हम सब अलग-अलग रंग के ‘इंसान’ हैं बस। किसी को ख़त्म करना, ख़ुद भी ख़त्म हो जाना है।
Tumhare Baare Mein (Hindi Edition)
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