उन दिनों के लोगों से मिलता हूँ तो वे उस वक़्त के क़िस्से सुनाते हैं। क़िस्सों में मैं था, ये मुझे कुछ याद नहीं रहता। मैं उनसे पूछता हूँ कि मैं था वहाँ? वे हँसने लगते हैं तो मैं झूठ बोलता हूँ कि हाँ याद आया। फिर मुझे जो याद है, वह क्या असल में हुआ था? पता नहीं, पर मैं उनके क़िस्सों के आदमी को और अपने जिए हुए को पहचान नहीं पाता हूँ। लगता है कि वह पता नहीं कौन है जिसने सारा कुछ सहा है और वह जाने कौन है जो जी रहा है!