Ayushi Singh

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“कहाँ जा रहे हो” जैसे सवालों पर मेरा जवाब अक्सर होता है, “बस यूँ ही…” और सही में लगता है कि लगभग हर लंबी यात्रा का पहला क़दम “बस यूँ ही…” से शुरू हुआ था। पहाड़ों पर घूमते हुए हमेशा नई पगडंडी पकड़ लेता हूँ, आज देखें ये रास्ता कहाँ जाता है? अगर भीतर जंगल में गुम जाता हूँ तो फिर गुदगुदी होने लगती है—भटकने के सुख की। मैं मिल जाऊँगा वापिस, पर बहुत भटकने के बाद ये यक़ीन है कि मैं वह नहीं होऊँगा जो जंगल में गुमा था। मैं बदल जाऊँगा। आईने के सामने खड़े होकर फिर भीतर गुदगुदी होती है ये पूछने की कि ये जो दिख रहा है सामने, ये कौन है?
Tumhare Baare Mein (Hindi Edition)
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