Vivek Singh

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प्रेम की भाषा प्रेमी ही गढ़ते हैं। यह शब्द, चेष्टा, शोर, चीख़, मौन, आहट, इशारा, प्रशंसा, अवहेलना इत्यादि कुछ भी हो सकता है। कूट का अर्थ वह ग्राह्य कर ही लेता है जिसके लिए वह भेजी गई है।
Chaurasi/चौरासी/84 (Hindi Edition)
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