Vivek Singh

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चुप तो वक़्त ही हो गया था। देर तक एक शून्य वातावरण में तैरता रहा। बेआवाज़ आलम इस स्थिति की ज़रूरत होती है। उनके पूरक। कोई भी ध्वनि, कोई भी अतिरिक्त बोल इस मौन की सुंदरता में विघ्न ही डालते हैं। प्रेम में शब्दों की आवश्यकता न्यून होती है।
Chaurasi/चौरासी/84 (Hindi Edition)
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