Vivek Singh

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अमावस से काले अंधकार से घिरे स्टेशन में सन्नाटा इस तरह पसरा था जैसे यह स्टेशन न होकर क़ब्रिस्तान हो और घरवाले मुर्दा फूँककर वापस लौट गए हों। आवाज़ के नाम पर झींगुरों का शोर ही कानों तक आता था।
Chaurasi/चौरासी/84 (Hindi Edition)
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