व्रतियों के मन्नतों की आड़ में छठ पर्व प्रेमियों के लिए जन्नत भी है। साथी की एक झलक पाने को पानवालों, सड़कों, चायख़ानों और कैसेट की दुकानों पर दिन निकाल देने वाले प्रेमियों के लिए यह दिन किसी मुराद के पूरे होने जैसा ही होता है। खिड़कियों, छतों, आँख के तिरछे कोरों, कॉलेज गेट की दरारों या रिक्शा के फटे पर्दों के बीच से झाँकतीं काजल भरी आँखों के लिए भी यह दो दिन स्वच्छंदता के ही होते हैं। प्रेम दरअसल उन दो दिनों में धूप और हवन-सामग्री के साथ हवाओं में तैरता है। प्रेम दरअसल उन दो दिनों में पूजा की डलिया के ठीक पीछे चलता है। प्रेम दरअसल उन दो दिनों नंगे पैरों के आबलों में फूटता है और पैरों को निहारती
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