Vivek Singh

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“पता है। आज जब तुम वहाँ से चली आई ना, तो मुझे लगा कि मैं देर से किसी अँधेरे कुएँ के भीतर से आवाज़ लगा रहा हूँ। मेरी आवाज़ लौटकर बस मुझ तक पहुँच रही हैं। मुझे लगा कि मैं देर से किसी खोह में दौड़ता जाता हूँ; मगर अँधेरा है कि ख़त्म ही नहीं होता।
Chaurasi/चौरासी/84 (Hindi Edition)
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