औरंगजेब ने अपने पिता के काल से ही मनमानी शुरू कर दी थी। सिंहासन पर आरुढ़ होते ही उसकी धर्मांधता ने सभी गैर-सुन्नी प्रजा को उसके विरुद्ध कर दिया। जीवन के अंतिम दिनों में वह अपने कुकृत्यों को याद करके पश्चाताप से भर उठा था। उसने अपने पुत्र आजम को पत्र में लिखा था—‘‘बुढ़ापा आ गया और दुर्बलता बढ़ गई। मेरे अंगों में अब शक्ति नहीं रही। मैं अकेला आया और अकेला जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूं और क्या करता आया हूं! उन दिनों को छोड़कर, जो तपस्या में बीते, शेष सभी के लिए पश्चाताप होता है। मैंने सच्चे अर्थों में शासन नहीं किया है और न किसानों का ही पोषण किया है।’’ औरंगजेब ने अपने अंतिम उद्गारों
औरंगजेब ने अपने पिता के काल से ही मनमानी शुरू कर दी थी। सिंहासन पर आरुढ़ होते ही उसकी धर्मांधता ने सभी गैर-सुन्नी प्रजा को उसके विरुद्ध कर दिया। जीवन के अंतिम दिनों में वह अपने कुकृत्यों को याद करके पश्चाताप से भर उठा था। उसने अपने पुत्र आजम को पत्र में लिखा था—‘‘बुढ़ापा आ गया और दुर्बलता बढ़ गई। मेरे अंगों में अब शक्ति नहीं रही। मैं अकेला आया और अकेला जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूं और क्या करता आया हूं! उन दिनों को छोड़कर, जो तपस्या में बीते, शेष सभी के लिए पश्चाताप होता है। मैंने सच्चे अर्थों में शासन नहीं किया है और न किसानों का ही पोषण किया है।’’ औरंगजेब ने अपने अंतिम उद्गारों को प्रगट करते हुए अपने पुत्र को लिखा—‘‘मेरा प्रभु मेरे हृदय में था, किंतु मेरी अंधी आंखें उसको नहीं देख सकी थीं। जीवन क्षण भंगुर है। एक बार खोया हुआ अवसर फिर वापस नहीं आ सकता। मैंने अपने जीवन में सैकड़ों अवसर खो दिए। भविष्य में मुझे कोई भी आशा नहीं है। मेरे जीवन की शक्ति समाप्त हो गई है। खाल और सूखा मांस शेष रह गया है। मैं संसार में कुछ भी नहीं लाया था, किंतु अब पाप की गठरी सिर पर रखकर ले जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मेरे पापों के मुझे क्या दंड मिलेंगे, यद्यपि मैं प्रभु की कृपा में विश्वास करता हूं, किंतु फिर भी मैं अपने पापों के कारण डरता हूं।’’ औरंगजेब ने अपने प्रिय पुत्र कामबख्श को लिखा था—‘‘मैं अब अकेला जा रहा हूं, जो कुछ पाप मैंने किया, उन सबका बोझ मैं अपने साथ लिये जा रहा हूं। मुझको अपने चारों ओर ईश्वर ही ईश्वर दिखाई देता है। मैंने बहुत पाप किए हैं। मैं नहीं जानता कि कौन सा दंड मुझे मिलेगा! मैं तुमको और तुम्हारे पुत्रों को भगवान् के भरोसे छोड़कर जाता हूं और तुमसे विदा लेता हूं।...
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