Rajesh Kamboj

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औरंगजेब ने अपने पिता के काल से ही मनमानी शुरू कर दी थी। सिंहासन पर आरुढ़ होते ही उसकी धर्मांधता ने सभी गैर-सुन्नी प्रजा को उसके विरुद्ध कर दिया। जीवन के अंतिम दिनों में वह अपने कुकृत्यों को याद करके पश्चाताप से भर उठा था। उसने अपने पुत्र आजम को पत्र में लिखा था—‘‘बुढ़ापा आ गया और दुर्बलता बढ़ गई। मेरे अंगों में अब शक्ति नहीं रही। मैं अकेला आया और अकेला जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूं और क्या करता आया हूं! उन दिनों को छोड़कर, जो तपस्या में बीते, शेष सभी के लिए पश्चाताप होता है। मैंने सच्चे अर्थों में शासन नहीं किया है और न किसानों का ही पोषण किया है।’’ औरंगजेब ने अपने अंतिम उद्गारों ...more
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PRACHIN EVAM MADHYAKALEEN BHARAT KA ITIHAS (Hindi Edition)
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