अशोक ने बुद्ध और ईसा मसीह के समान प्रेम बल एवं त्याग बल से धर्म-विजय प्राप्त की। उसने बड़े-बड़े धार्मिक उपदेश्कों धर्म-प्रचारकों, साधु-महात्माओं और धर्मनिष्ठ व्यक्तियों की एक विशाल सेना बनाई, जिन्होंने सद्भावना, सद्व्यवहार, सद्वचन और सद्विचारों के हथियारों को सुसज्जित कर न केवल भारत, बल्कि सिंहल द्वीप, स्वर्णभूमि, चीन, जापान आदि देशों के साथ-साथ उत्तरी-पश्चिमी एशिया के यवन राज्यों पर अपने धर्म का परचम फहराया। अशोक की धर्म पताका एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीपों के ज्ञात भूभागों में लहराने लगी। अशोक की यह विजय स्थायी सिद्ध हुई। सदियों तक इन देशों में बौद्ध धर्म का वर्चस्व रहा, और आज भी है।
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