Rajesh Kamboj

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विशाखदत्त रचित ‘देवी चंद्रगुप्तम’ नाटक के कुछ उदाहरण मिले हैं, जिसके अनुसार रामगुप्त ही समुद्रगुप्त के बाद सम्राट् बना। किंतु वह निर्बल और कायर था। एक बार किसी शक राजा से उसका युद्ध छिड़ गया। वह शत्रुओं से घिर गया और भीषण परिस्थिति में फंस गया। अंततः उसने अपनी और प्रजा की रक्षा करने के लिए अपनी रानी ध्रुवदेवी (ध्रुवस्वामिनी) को शक राजा के रनिवास में भेजना स्वीकार कर लिया। छोटा भाई चंद्रगुप्त इस अपमान को सह न सका। अपने वंश एवं भाभी के सम्मान की रक्षा करने के लिए उसने एक चाल खेली। वह स्वयं ध्रुवस्वामिनी के वेश में शक राजा के खेमें में पहुंचा और उसकी हत्या कर दी। इस घटना से चंद्रगुप्त का सम्मान ...more
PRACHIN EVAM MADHYAKALEEN BHARAT KA ITIHAS (Hindi Edition)
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