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प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् प्रो. मैक्समूलर के अनुसार, आर्य जाति और उसकी सभ्यता का ज्ञान हमें वेदों और अवेस्ता से मिलता है। इनके अनुसार भारतीय तथा ईरानी आर्य एक लंबे समय तक साथ-साथ रहे, अतः इनका आदि देश भारत और ईरान के समीपवर्ती था। वहीं से एक शाखा ईरान को, दूसरी भारत को तथा तीसरी यूरोप को गई होगी, क्योंकि प्राचीन आर्य पशुपालन और कृषि कार्य करते थे, अतएव वे एक बड़े मैदान में रहते हैं। इन तथ्यों के आधार पर ही मैक्समूलर और अन्य विद्वान् यह मानते हैं कि मध्य एशिया ही आर्यों का मूल देश है।
सेल्यूकस को चंद्रगुप्त के साथ संधि करनी पड़ी। इस संधि की चार शर्तें थीं— (i) वर्तमान अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान का संपूर्ण प्रदेश, जो खैबर दर्रे से हिंदुकुश पर्वत तक फैला था, सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त को दे दिया। (ii) सेल्यूकस ने अपनी कन्या का विवाह चंद्रगुप्त के साथ कर दिया। (iii) चंद्रगुप्त ने पांच सौ हाथी उपहार के रूप में सेल्यूकस को भेंट किए। (iv) दूत विनिमय करने का निश्चय किया गया। एक यूनानी राजदूत पाटलिपुत्र में आया।
अशोक ने बुद्ध और ईसा मसीह के समान प्रेम बल एवं त्याग बल से धर्म-विजय प्राप्त की। उसने बड़े-बड़े धार्मिक उपदेश्कों धर्म-प्रचारकों, साधु-महात्माओं और धर्मनिष्ठ व्यक्तियों की एक विशाल सेना बनाई, जिन्होंने सद्भावना, सद्व्यवहार, सद्वचन और सद्विचारों के हथियारों को सुसज्जित कर न केवल भारत, बल्कि सिंहल द्वीप, स्वर्णभूमि, चीन, जापान आदि देशों के साथ-साथ उत्तरी-पश्चिमी एशिया के यवन राज्यों पर अपने धर्म का परचम फहराया। अशोक की धर्म पताका एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीपों के ज्ञात भूभागों में लहराने लगी। अशोक की यह विजय स्थायी सिद्ध हुई। सदियों तक इन देशों में बौद्ध धर्म का वर्चस्व रहा, और आज भी है।
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विशाखदत्त रचित ‘देवी चंद्रगुप्तम’ नाटक के कुछ उदाहरण मिले हैं, जिसके अनुसार रामगुप्त ही समुद्रगुप्त के बाद सम्राट् बना। किंतु वह निर्बल और कायर था। एक बार किसी शक राजा से उसका युद्ध छिड़ गया। वह शत्रुओं से घिर गया और भीषण परिस्थिति में फंस गया। अंततः उसने अपनी और प्रजा की रक्षा करने के लिए अपनी रानी ध्रुवदेवी (ध्रुवस्वामिनी) को शक राजा के रनिवास में भेजना स्वीकार कर लिया। छोटा भाई चंद्रगुप्त इस अपमान को सह न सका। अपने वंश एवं भाभी के सम्मान की रक्षा करने के लिए उसने एक चाल खेली। वह स्वयं ध्रुवस्वामिनी के वेश में शक राजा के खेमें में पहुंचा और उसकी हत्या कर दी। इस घटना से चंद्रगुप्त का सम्मान
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राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में चंदबरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’ में एक मनोरंजक कथा है। माना जाता है कि एक बार परशुराम मुनि ने एक समय क्रोध में आकर सारे क्षत्रियों का संहार कर दिया था, जिसके कारण पृथ्वी पर अराजकता छा गई। अंततः देवताओं ने धरती को म्लेच्छों से बचाने के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। ब्रह्माजी के अनुरोध पर वशिष्ठ मुनि ने आबू पर्वत पर एक यज्ञ किया। यह यज्ञ चालीस दिनों तक चला। यज्ञ के अग्निकुं ड से प्रतिहार, परमार (पवार) चौहान, सोलंकी (चालुक्य) नामक चार योद्धा उत्पन्न हुए। इससे ही चार राजपूतों के वंशों का उदय हुआ। अतः क्षत्रिय अग्निकुल या अग्निकुंड की संतान थे। आलोचक इसे कपोल-कल्पना
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मुहम्मद गोरी का कोई पुत्र नहीं था, लेकिन जब कभी उससे पुत्र की बात की जाती तो वह कहा करता था कि, ‘‘क्या तुर्क गुलामों के रूप में मेरे हजारों पुत्र नहीं हैं?’’ उसका कथन सत्य था, क्योंकि उसके दासों ने पुत्रवत् ही उसका नाम एवं यश बढ़ाया।
खिलजियों की उत्पत्ति विवादास्पद है। खिलजी पश्चिमी तुर्किस्तान के एक प्रजातीय समूह के लोग थे। वे पूर्वी अफगनिस्तान के कबाइली क्षेत्र के पास के निवासी थे। अफगानों के साथ अंतर जातीय विवाह करके वे मुख्यतः अफगानी बन गए। स्मिथ उन्हें पठान या अफगान मानते हैं, लेकिन यह भ्रममूलक तथ्य लगता है। वास्तव में अफगानिस्तान के हेलमंद नदी के तटों पर स्थित प्रदेश को ‘खलज’ कहते थे और वहां के निवासियों को ‘खिलजी’ कहा जाता था। इतिहासकार निजामुद्दीन अहमद ने अपनी रचना ‘तबकात-ए-नासिरी’ में खिलजियों को तुर्क जाति का बताया है। ‘सेलजुकनामा’ के लेखक ने भी इन्हें तुर्क माना है। फरिश्ता के अनुसार, सेल्जुकों के इतिहास के
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औरंगजेब के काल में केवल स्थापत्य कला का ही कुछ कुछ विकास हुआ। उसने अपनी पत्नी रबिया उद दौरानी की कब्र को ताजमहल की तरह बनवाने का प्रयत्न किया, लेकिन साज-सज्जा, मेहराब की व्यवस्था आदि में यह ताज का मुकाबला नहीं कर सकी। इसे ‘बीबी का मकबरा’ के नाम से जाना जाता है। औरंगजेब ने लाहौर में जामा मसजिद का निर्माण भी करवाया, जो आकार में विशाल होते हुए भी सौंदर्य में फीकी है। औरंगजेब संगीत के प्रति नितांत रुखा था। उसने सभी शाही संगीतकारों को हटा दिया। हालांकि प्रारंभिक वर्षों में उसकी संगीत में अभिरुचि थी। लेकिन बाद में वह सुन्नी कट्टरपंथी बन गया। उसके दरबार में संगीतकारों ने संगीत की अर्थी निकाली।
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डॉ. ए.एल. श्रीवास्तव के अनुसार, ‘‘देश के सभी प्रांतों से दिल्ली और आगरा में गाड़ियां भर-भरकर मूर्तियां लाई जाती थीं तथा उन्हें मस्जिदों की सीढ़ियों के नीचे भरवा दिया जाता था। कभी-कभी तो मंदिरों में गौवध भी किया जाता था। मूर्तियों को पैरों तले भी रौंदा जाता था।’’ औरंगजेब के इन कार्यों के कारण वह हिंदू जनता की घृणा का पात्र बना गया, किंतु मुसलमानों के लिए वह ‘जिंदापीर’ के रूप में लोकप्रिय हुआ।
औरंगजेब ने अपने पिता के काल से ही मनमानी शुरू कर दी थी। सिंहासन पर आरुढ़ होते ही उसकी धर्मांधता ने सभी गैर-सुन्नी प्रजा को उसके विरुद्ध कर दिया। जीवन के अंतिम दिनों में वह अपने कुकृत्यों को याद करके पश्चाताप से भर उठा था। उसने अपने पुत्र आजम को पत्र में लिखा था—‘‘बुढ़ापा आ गया और दुर्बलता बढ़ गई। मेरे अंगों में अब शक्ति नहीं रही। मैं अकेला आया और अकेला जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूं और क्या करता आया हूं! उन दिनों को छोड़कर, जो तपस्या में बीते, शेष सभी के लिए पश्चाताप होता है। मैंने सच्चे अर्थों में शासन नहीं किया है और न किसानों का ही पोषण किया है।’’ औरंगजेब ने अपने अंतिम उद्गारों
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