Abhishek Anand

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पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पृथिव्यादिपंचक कहलाते हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध—ये शब्दादिपंचक हैं। वाक्, पाणि, पाद, पायु तथा उपस्थ—ये वागादिपंचक हैं। श्रोत्र, नेत्र, नासिका, रसना, और त्वक्—ये श्रोत्रादिपंचक हैं। शिर, पार्श्व, पृष्ठ और उदर—ये चार हैं। इन्हींमें जंघाको भी जोड़ ले। फिर त्वक् आदि सात धातुएँ हैं। प्राण, अपान आदि पाँच वायुओंको प्राणादिपंचक कहा गया है।
Shiv Puran (Sanshipt), Code 1468, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official) (Hindi Edition)
by Vedvyas
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