Abhishek Anand

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मेरे उत्तरवर्ती मुखसे अकारका, पश्चिम मुखसे उकारका, दक्षिण मुखसे मकारका, पूर्ववर्ती मुखसे विन्दुका तथा मध्यवर्ती मुखसे नादका प्राकट्य हुआ। इस प्रकार पाँच अवयवोंसे युक्त ओंकारका विस्तार हुआ है। इन सभी अवयवोंसे एकीभूत होकर वह प्रणव ‘ॐ’ नामक एक अक्षर हो गया।
Shiv Puran (Sanshipt), Code 1468, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official) (Hindi Edition)
by Vedvyas
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