Prateek Singh

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कुतर्क की प्रवृत्ति ‘कथ्य’ परक होती है, जिसमें तथ्य और सत्य का कोई स्थान नहीं होता। कथ्य सुनने-समझने में नहीं सिर्फ कहने में विश्वास रखता है। इसलिए दुनिया का श्रेष्ठतम तर्क भी कुतर्क की भूमि पर परास्त हो जाता है। कुतर्क की विशेषता होती है कि वह अपने चेहरे पर तर्क का मुखौटा लगाकर बहस की भूमि पर खड़ा होता है, तर्क के ऊपर अपनी विजय के कारण यह लोगों को तर्क का परिष्कृत रूप दिखाई देता है, जिससे कुतर्क को सु-तर्क की प्रतिष्ठा भी मिलती। कुतर्क शोर प्रधान होता है, इसमें तर्क की संवाद स्थापित करनेवाली प्रवृत्ति नहीं होती। कुतर्क की शक्ति ही कथ्य में होती है, इसलिए लगातार बोलते रहना इसका स्वभाव है। ...more
Maun Muskaan Ki Maar (Hindi Edition)
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