Prateek Singh

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आत्माएँ तो अपनी अतृप्त इच्छा की पूर्ति के लिए किसी जीवित व्यक्ति को अपना साधन बनाती हैं, उनकी एक निश्चित माँग होती है, इसलिए उनसे निपटना आसान है। किंतु ये! अतृप्त नहीं अशांत आत्माएँ हैं। जिनकी कोई माँग ही नहीं होती, सिवाय अशांति के। जो व्यक्ति इनके रडार में है, उसे पीड़ा पहुँचाना ही इनका प्रमुख धर्म है। मृत आत्माएँ तो बेचारी स्वपीड़ा से ग्रसित होती हैं, किंतु ये परपीड़ा के उन्माद से भरे होते हैं। इसलिए मैं इनको परपीड़क संघ के नाम से पुकारता
Maun Muskaan Ki Maar (Hindi Edition)
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