Prateek Singh

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सफलताएँ तुम्हें तृष्णा देती हैं और उपलब्धियाँ तुम्हें तृप्ति से भरती हैं। जिंदा शरीर और मरी हुई आत्मा या जिंदा आत्मा और मरा हुआ शरीर दोनों ही अतृप्त रहते हैं। सिर्फ किसी एक को ही महत्त्व देना हमारे असंतोष का कारण होता है। शरीर की रुचि सफलता में होती है और आत्मा की उपलब्धि में। अब देखो न, मेरा शरीर भी असंतुष्ट ही समाप्त हो गया और मैं भी स्वतंत्र होने के बाद भी अतृप्त ही हूँ।
Maun Muskaan Ki Maar (Hindi Edition)
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