संसार अब गोविंद की चुटकी से नहीं, गुग्गी की क्लिक से चलता है, अब गोविंद के ‘माउथ’ की नहीं, गुग्गी के ‘माउस’ की कीमत है।” अब द्रौपदी कितना ही ‘स्क्रीम’ कर ले कि, सेव मी-सेव मी, दुशासन इज पुलिंग माई सारी! कोई फर्क नहीं पड़ता, चिल्लाती रहो, क्योंकि अब स्क्रीम नहीं ‘स्क्रीन’ का महत्त्व है। बड़ी-से-बड़ी स्क्रीम भी अब तब ही सुनी जाएगी, जब वह स्क्रीन पर दिखाई दे। बड़ी स्क्रीन से अधिक महत्त्व छोटी स्क्रीन का है, क्योंकि स्क्रीम अब सुनने की नहीं, देखने की चीज है।