हम सुप्त पड़े हुए शरीर के कमजोर होने का इंतजार करते हैं, क्योंकि हमें शरीर के इस दुर्गुण की भी जानकारी है कि कमजोर शरीर की कोई भी दूसरा शरीर सहायता नहीं करता। सो पहली फुरसत में ही हम शरीर को चित्त कर निकल लेते हैं। शरीर एक नंबर का गधा और अहंकारी होता है, वह यह भूल जाता है कि उसकी एक सीमा होती है, इसलिए वह हारता है और अंत में मरता भी है। हम जो आत्मा हैं, असीम होते हैं, हमको आप सुप्त कर सकते हैं, सुला सकते हैं, कमजोर और बीमार कर सकते हैं, लेकिन मार नहीं सकते। हमारा अंत नहीं कर सकते, हमें मिला अमरता का यही वरदान हमारे लिए अभिशाप हो जाता है। हम आत्माएँ नरक की यातना शरीर के मरने के बाद नहीं, शरीर
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