मैंने कहा कि जब कोई बलात् हमारी ईमानदारी पर हमला करता है, जब न चाहते हुए भी हम लूट लिये जाते हैं, जब जबरदस्ती हमारे सच को झूठ करार दिया जाता है, जब चार लोग मिलकर हमें देखते ही मरीज या पागल कहने लगते हैं, तब अच्छा-भला आदमी टूट ही जाता है। अनपढ़ आदमी की मार शरीर पर होती है, लेकिन पढ़े-लिखे लोग मन-मस्तिष्क पर चोट करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि तन को खंडित करने से कहीं अधिक लाभ मन को खंडित करने में होता है। किसी को नष्ट करना है तो उसको नहीं, उसके विश्वास को नष्ट कर दो, उसका विवेक स्वयमेव समाप्त हो जाएगा। फिर वह परिवार में रहते हुए भी परिवार का व्यक्ति नहीं, भीड़ का हिस्सा हो जाएगा।