शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि अन्न ही साकार ब्रह्म है। अन्न रूपी ब्रह्म जब साकार से निराकार की बिरादरी में जाता है, गैस फॉर्म में, तब आप उसे देख नहीं सकते, सिर्फ अनुभूत कर सकते हैं, तब वह आँख का नहीं, नाक का विषय हो जाता है और यह संसार का नियम है कि हर आदमी को दूसरे का ब्रह्म बेहूदा, बदबूदार ही लगता है। इसलिए तुम गौर करना, इनसान को दूसरे का पाद और दूसरे की सफलता फूटी आँखों नहीं सुहाती, लेकिन अपना पाद और अपनी सफलता के गुणगान गाते हुए इनसान दिव्यानुभूति से भरा होता है। अपना ब्रह्म ब्रह्म और दूसरे का ब्रह्म बदबू...यह कोई बात हुई! तुम