बड़े आए आत्मा को कोई जला नहीं सकता वाले...नजर उठा के देख पोंगे, चारों तरफ जली-भुनी आत्माओं की रेलमपेल है। एक आदमी ढूँढ़ के बता दे, जो जला हुआ न हो? आजकल सड़ी सी बात पे आदमी की आत्मा फट जाती है, दूसरे की तरक्की देखकर आत्मा फक्क से जल जाती है। हर कोई कहता हुआ मिल जाएगा, हमारी आत्मा जल गई, आत्मा फट गई, आत्मा मर गई—खुद जली, भुनी, मरी हुई आत्मा लेकर घूम रहे हो, और कहते हो आत्मा को कोई मार नई सकता! अपने आपको जिंदा कहते हुए शर्म नहीं आती तुमको?