में धप्पू महाराज वहाँ आ पहुँचे, मुझे अपने मित्र पंचायती गुरु के साथ बैठा देखकर बोले कि मैं बहरा नहीं हूँ। सुनने लायक कुछ बचा नहीं, इसलिए मैं बहरेपन का नाटक करता हूँ और मैं गूँगा भी नहीं हूँ। बोलना वहाँ चाहिए, जहाँ कोई सुननेवाला हो, आजकल सुनने में किसी को रुचि नहीं है, इसलिए गूँगे होने का नाटक करता हूँ।