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Kindle Notes & Highlights
अंधेरे बीच में आ जाते इससे पहले ही दिया तुम्हारे दिये से जला लिया मैंने
इससे बढ़कर ख्वाब जीने की सज़ा कुछ भी नहीं ज़िन्दगी भर ठोकरे खाईं मिला कुछ भी नहीं
मेरी निगाह में मंज़िल के ख्वाब रहते हैं मुझे सताती नहीं रास्तों की तन्हाई
दुनिया की हर जंग वहीं लड़ जाता है जिसको अपने आप से लड़ना आता है
यही चाहा कि जो मुझसे मिले मेरी तरह सोचे इसी इक सोच से ख़ुद को अकेला कर लिया मैंने
सफ़र मेरा किसी तूफान के डर से नहीं रुकता इरादा कर लिया तो फिर इरादा कर लिया मैंने
दरिया का सारा नशा उतरता चला गया मुझको डुबोया और मैं उभरता चला गया
मंज़िल समझ के बैठ गये जिनको चन्द लोग मैं ऐसे रास्तों से गुज़रता चला गया
बिछड़ जाऊँ तो फिर रिश्ता तेरी यादों से जोड़ूँगा मुझे ज़िद है मैं जीने का कोई मौक़ा न छोड़ूँगा
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
ये मैं ही था बचा के ख़ुद को ले आया किनारे तक समन्दर ने बहुत मौक़ा दिया था डूब जाने का
वो भला दुनिया को पाने में कहाँ जो मज़ा दुनिया को ठुकराने में है
ये एहतियाज़-ए-मोहब्बत तो जी नहीं जाती कि तेरी बात मुझी से कही नहीं जाती
हो गया जैसा यहाँ, ऐसा कहाँ हो जायेगा क़तरे बोलेंगे, समन्दर बेज़बां हो जायेगा
मैं न कहता था कि मुझमें इतनी दिलचस्पी न ले वह जो अपना ही नहीं तेरा कहाँ हो जाएगा
वह मेरे सामने ही गया और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया झूठ वाले कहीं-से-कहीं बढ़ गये और मैं था कि सच बोलता रह गया
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा अब इसके बाद मेरा इम्तिहान1 क्या लेगा
मैं उसका हो नहीं सकता, बता न देना उसे लकीरें हाथ की अपनी वह सब जला लेगा
मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ मुझे बचाना समन्दर की ज़िम्मेदारी है
दुआ करो कि सलामत रहे मिरी हिम्मत ये इक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता मैं उस को राह से जब तक हटा नहीं देता
ये छोट-छोटे दिये साज़िशों में रहते हैं किसी का घर कोई सूरज जला नहीं देता
उसूलों पर जहां आंच आये, टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हो, तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
सलीक़ा ही नहीं, शायद उसे महसूस करने का जो कहता है ख़ुदा है, तो नज़र आना ज़रूरी है
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते इसीलिये तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है यह रूठ जायें, तो फिर लौटकर नहीं आते
मैं भी कुछ ऐसा दूर नहीं हूं तू भी समन्दर-पार नहीं है
क्या दुख है, समन्दर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता
क़तरा1 हूं, अपनी हद से गुज़रता नहीं मैं समन्दर को बदनाम करता नहीं
हर एक अपने लिए मेरे ज़ख़्म गिनता है मेरे लिए भी कोई हो, जो मुझसे प्यार करे
आँखों आँखों रहे और कोई घर न हो ख़्वाब जैसा किसी का मुक़द्दर न हो
जिसको कमतर समझते रहे हो वसीम मिल के देखो कहीं तुमसे बेहतर न हो
पाने को मरने वालों की दुनिया में खोने वालों का भी एक घराना है
ओस का नन्हा सा क़तरा1 समझायेगा सूरज की नज़रों में कैसे आना है
कहाँ तक आंख रोयेगी कहाँ तक किसका ग़म होगा मिरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा
इक तेरे न होने से कुछ अच्छा नहीं लगता इस शहर में क्या है जो अधूरा नहीं लगता
ख़ुदगर्ज़ बना देती है शिद्दत की राह भी प्यासे को कोई दूसरा प्यासा नहीं लगता
कही-सुनी पे बहुत एतबार1 करने लगे मिरे ही लोग मुझे संगसार2 करने लगे
क़द8 मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है
जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता
ये दिल बच कर ज़माने भर से चलना चाहे है लेकिन जब अपनी राह चलता है अकेला होने लगता है

