Charag (Hindi Edition)
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Read between August 24, 2022 - January 17, 2023
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अंधेरे बीच में आ जाते इससे पहले ही दिया तुम्हारे दिये से जला लिया मैंने
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इससे बढ़कर ख्वाब जीने की सज़ा कुछ भी नहीं ज़िन्दगी भर ठोकरे खाईं मिला कुछ भी नहीं
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मेरी निगाह में मंज़िल के ख्वाब रहते हैं मुझे सताती नहीं रास्तों की तन्हाई
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दुनिया की हर जंग वहीं लड़ जाता है जिसको अपने आप से लड़ना आता है
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यही चाहा कि जो मुझसे मिले मेरी तरह सोचे इसी इक सोच से ख़ुद को अकेला कर लिया मैंने
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सफ़र मेरा किसी तूफान के डर से नहीं रुकता इरादा कर लिया तो फिर इरादा कर लिया मैंने
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दरिया का सारा नशा उतरता चला गया मुझको डुबोया और मैं उभरता चला गया
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मंज़िल समझ के बैठ गये जिनको चन्द लोग मैं ऐसे रास्तों से गुज़रता चला गया
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बिछड़ जाऊँ तो फिर रिश्ता तेरी यादों से जोड़ूँगा मुझे ज़िद है मैं जीने का कोई मौक़ा न छोड़ूँगा
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निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
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ये मैं ही था बचा के ख़ुद को ले आया किनारे तक समन्दर ने बहुत मौक़ा दिया था डूब जाने का
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वो भला दुनिया को पाने में कहाँ जो मज़ा दुनिया को ठुकराने में है
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ये एहतियाज़-ए-मोहब्बत तो जी नहीं जाती कि तेरी बात मुझी से कही नहीं जाती
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हो गया जैसा यहाँ, ऐसा कहाँ हो जायेगा क़तरे बोलेंगे, समन्दर बेज़बां हो जायेगा
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मैं न कहता था कि मुझमें इतनी दिलचस्पी न ले वह जो अपना ही नहीं तेरा कहाँ हो जाएगा
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वह मेरे सामने ही गया और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया झूठ वाले कहीं-से-कहीं बढ़ गये और मैं था कि सच बोलता रह गया
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मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा अब इसके बाद मेरा इम्तिहान1 क्या लेगा
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मैं उसका हो नहीं सकता, बता न देना उसे लकीरें हाथ की अपनी वह सब जला लेगा
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मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ मुझे बचाना समन्दर की ज़िम्मेदारी है
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दुआ करो कि सलामत रहे मिरी हिम्मत ये इक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
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अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता मैं उस को राह से जब तक हटा नहीं देता
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ये छोट-छोटे दिये साज़िशों में रहते हैं किसी का घर कोई सूरज जला नहीं देता
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उसूलों पर जहां आंच आये, टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हो, तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
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सलीक़ा ही नहीं, शायद उसे महसूस करने का जो कहता है ख़ुदा है, तो नज़र आना ज़रूरी है
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तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते इसीलिये तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है यह रूठ जायें, तो फिर लौटकर नहीं आते
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मैं भी कुछ ऐसा दूर नहीं हूं तू भी समन्दर-पार नहीं है
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क्या दुख है, समन्दर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता
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क़तरा1 हूं, अपनी हद से गुज़रता नहीं मैं समन्दर को बदनाम करता नहीं
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हर एक अपने लिए मेरे ज़ख़्म गिनता है मेरे लिए भी कोई हो, जो मुझसे प्यार करे
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आँखों आँखों रहे और कोई घर न हो ख़्वाब जैसा किसी का मुक़द्दर न हो
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जिसको कमतर समझते रहे हो वसीम मिल के देखो कहीं तुमसे बेहतर न हो
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पाने को मरने वालों की दुनिया में खोने वालों का भी एक घराना है
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ओस का नन्हा सा क़तरा1 समझायेगा सूरज की नज़रों में कैसे आना है
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कहाँ तक आंख रोयेगी कहाँ तक किसका ग़म होगा मिरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा
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इक तेरे न होने से कुछ अच्छा नहीं लगता इस शहर में क्या है जो अधूरा नहीं लगता
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ख़ुदगर्ज़ बना देती है शिद्दत की राह भी प्यासे को कोई दूसरा प्यासा नहीं लगता
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कही-सुनी पे बहुत एतबार1 करने लगे मिरे ही लोग मुझे संगसार2 करने लगे
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क़द8 मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है
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जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता
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ये दिल बच कर ज़माने भर से चलना चाहे है लेकिन जब अपनी राह चलता है अकेला होने लगता है