Indra  Vijay Singh

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“वह एक मद है, जो रक्त को उफ़नाता है। उससे उत्तेजना का अनुभव होता है। वह सुख नहीं है। सुख का भ्रम उससे अवश्य उत्पन्न होता है। उत्तेजना अपने-आप में कष्ट है। उसके अवसान की आशंका भय है।...और उसका अवसान पीड़ा है।”
बंधन : महासमर भाग - १
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