सुख’ और ‘भोग’ दो अलग स्थितियाँ हैं माँ!” द्वैपायन बोले, “‘सुख’ एक मानसिक स्थिति है, जो भोग के अभाव में भी सम्भव है। या शायद अधिक सत्य यही है कि सुख, भोग के अभाव में ही सम्भव है। और भोग तो दुख का प्रवेश-द्वार है माँ! भोग ने कभी किसी को सुखी नहीं किया।”