“मुझे विश्वास नहीं होता पुत्र!” सत्यवती बोली, “ऐसा त्याग क्या मानव के लिए संभव है।?” “विवेकी व्यक्तियों के लिए, अपने सुख के निमित्त कोई भी त्याग साधारण बात है।” “तुम अत्यन्त बुद्धिमान हो पुत्र! तुम्हारी बात में मुझे संदेह नहीं करना चाहिए।” सत्यवती बोली, “किन्तु मेरा मन आज भी यही कहता है कि ग्रहण का नाम सुख है; त्याग का दुख। अर्जन से लोग सुखी होते हैं, विसर्जन से दुखी।...राज्य-त्याग से भीष्म को दुखी होना ही चाहिए था।”