Indra  Vijay Singh

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उसे इस प्रश्न को छोड़ देना चाहिए, कि उसके लिए श्रेयस्कर क्या है! उसे तो अपना सत्य स्वीकार कर लेना चाहिए।...और अपना सत्य स्वीकार करने का अर्थ अपनी सीमाओं को स्वीकार करना ही है।...उसकी सीमा है कि वह कामेच्छा को त्याग नहीं सकता। राज-वैभव को छोड़ना नहीं चाहता। लाख तपस्वी जीवन व्यतीत करे, किन्तु वह तपस्या, जीवन के भोग के लिए है, उसके त्याग के लिए नहीं...
बंधन : महासमर भाग - १
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